Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-10)# कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


चम्पा ने जब श्यामलाल से ये पूछा कि परी भूषण प्रसाद जी के यहां क्या करने गयी थी तो श्याम लाल बोला,

"यही तो नहीं पता कि ये लड़की उस कोठी में क्या करने गयी थी । मैंने सुना है कोठी के असली मालिक राज बाबू शहर से कुछ दिनों के लिए आये है ।विदेश से पढ़ाई पढ़कर वहीं शहर में ही डाक्टरी कर रहे हैं।वो तो भूषण साहब को कोई काम आ गया था इसलिए यहां आये हुए है।पर आज जब मैंने ये उनके बगीचे में पड़ा देखा तो लगा इसे कहीं देखा है जब गौर किया तो याद आया ये तो सुबह अपनी परी ने पहन रखा था वैसे ये झूमका किसी पुराने जमाने की राजकुमारी का लग रहा है।"

"हां मेरा भी इस झूमके पर दिल आ गया था पर ये एक ही था परी ने तो इसे उसी समय उतार दिया था  अब दोनों हो गये है । मैं तो इसे जरूर पहनूंगी।"

श्यामलाल ने झिड़कते हुए कहा,"पगली कहीं पकड़ी गयी ना तो चोरी के इल्ज़ाम में दोनों जेल की हवा खायेंगे ना जाने किसके झूमके इस लड़की को मिल गये।और एक बात अब हम दोनों इस पर पहरा देंगे और देखेंगे कि ये जाती कहां है।"

चम्पा ने श्यामलाल की हां में हां मिलाई।

तभी परी अंगड़ाई लेते हुए उठी और चम्पा से बोली,"मां भूख लगी है फटाफट खाना दो।आज पता नहीं क्यों सारा शरीर दुःख रहा है ऐसा लगता है जैसे अभी बुखार हो जाएगा।"

"हां हां बिटिया तेरे बापू भी काम से आ गये है चलो दोनों बाप-बेटी खाना खा लो।"चम्पा ने उसे पुचकारते हुए कहा।

श्यामलाल हाथ धोकर रसोईघर में आ गया । चम्पा ने श्यामलाल की थाली लगा दी तभी परी भी आ गयी तो तुनकते हुए बोली,"क्या मां तुमने मेरी थाली नहीं लगाई ।देखो बापू मां को ,मेरे पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।अब मैं आपके साथ आप की थाली में ही खाऊंगी।"

यह देखकर श्यामलाल मुस्कुरा उठा कि चलो और समय तो ये हमारी वहीं वाली परी है जो बचपन में शरारतें करती थी ,जिद करती थी।पता नहीं रात को इसे क्या दौरा पड़ता है । दोनों बाप बेटी भोजन कर रहे थे तभी श्यामलाल ने बड़े प्यार से परी से पूछा,"बिटिया भूषण प्रसाद जी की कोठी को जानती हो?"


"कौन भूषण प्रसाद?"परी के मुंह पर बिल्कुल सपाट भाव थे।

"वहीं जिनके यहां मैं बागवानी सम्हालता हूं।"

"क्या बापू आप भी ,आप उनकी बागवानी देखते हो तो आप को ही उनकी कोठी पता होगी मेरा क्या काम, हां हेमा का,शिखा का, स्वीटी का घर पूछों तो मैं बता दूंगी।आप भी ना बस……।"


यह कहकर परी खाना खा कर उठ गयी हाथ धोने के लिए।

अब श्यामलाल को ये तसल्ली हो गयी थी कि ये सपने में चल कर ही वहां तक गयी है वैसे इसे कुछ नहीं पता।




इधर जब राज सोकर उठा तो उसे अपना सिर  भारी भारी लग रहा था ।रात सही से सो नहीं पाया था सुबह सुबह आंख लगी ही थी कि एक स्वप्न दिखाई दिया राज को ।

जैसे वो महल के उसी तहखाने में बैठा है और उसके साथ वही लड़की प्रेमालाप कर रही है वह बहुत ही सुंदर नृत्य की मुद्रा में खड़ी हो गयी और वह लड़की राज को उसकी मूर्ती बनाने के लिए कह रही है ।राज ने भी किसी मूर्तिकार की तरह कपड़े पहन रखे हैं ।धोती गमछा और सिर पर पगड़ी ।वह थोड़ा सा नाचती हैं फिर उसी मुद्रा में आकर खड़ी हो जाती है ।उसकी आंखों में प्रेम बेहताशा छलक रहा है ।ऐसा लगता है जैसे वो उसे नहीं देखेगी तो मर जाएगी। क्यों कि वो मूर्तिकार उसकी पीठ की तस्वीर बना रहा था और वो बार बार उसे मुड़ मुड़ कर देखे जा रही थी।तभी ऐसे लगा जैसे किसी ने उसकी पीठ पर चाकू मारा दूर से निशाना लगा कर ।उसके मुंह से जोर की एक चीख निकली और वह वहीं ढेर हो गई।

तभी अचानक से राज की आंख खुल गई ।वह इतनी सर्दी में भी पसीना पसीना हो गया था उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी अपने की मृत्यु का दृश्य देखकर आ रहा है।

तभी नयना उसके कमरे में आई ।उसने गुलाबी रंग की साड़ी पहन रखी थी और बगीचे से तोड़कर गुलाबी फूल ही बालों में लगाया था।उसने राज को उठा देखकर कहा,

"अरे तुम जाग गये । पापा कह रहे थे कि मैं तुम को ना जगाऊं । क्या बात तबीयत ठीक नहीं है क्या तुम्हारी ?"

नयना ने उसके पास जाकर उसका माथा छूआ जो पसीने पसीने हो गया था।

"क्या बात तुम्हें इतने पसीने क्यों आ रहे हैं ?"


"कुछ नहीं मोटी ,तुम जो आ गयी हो कमरे में तो तापमान ऐसे ही बढ़ गया ।"राज ने हंसते हुए कहा।


"ये तुम मेरी तारीफ कर रहे हो या खिंचाई?*

"अब ये तुम कुछ भी समझ सकती हो।"

ये कहकर राज बिस्तर से हंसते हुए उठ गया।वह हंस तो रहा था लेकिन सपने वाला दृश्य उसे बार बार उदासी की ओर धकेल रहा था ।ऐसा लग रहा था जैसे कोई अपना उससे बिछुड गया है।

वह नीचे आया तो मिस्टर भूषण प्रसाद अपने स्टडी रुम में थे ।नयना ने उसे चाय का कप दिया तो वह उसे लेकर स्टडी रूम में चला गया।

वहां पर मिस्टर प्रसाद पीठ किये टेबल के ऊपर कुछ देख रहे थे ।पीछे ने राज ने आवाज दी,

"अंकल क्या कर रहे हैं आप ? कोई जरूरी काम……?"


मिस्टर प्रसाद ने पीछे मुड़कर कर देखा और हंसते हुए बोले,"अरेरेरे…राज तुम उठ गये । थोड़ा और सो लेते बेटा ।"

जब वो मुडे तो उनके हाथ में वही संदूकची थी जो उन्हें उस लाल हवेली के कमरे में बक्से में मिली थी ।जिसे देखकर राज एकदम उछल कर पड़ा,

"अंकल , आप…..आप इसे ले आये ? आप कब लायें इसे ? मैंने तो देखा ही नहीं आप को इसे लाते हुए।"


"बेटा ले तो आया हूं ।पर इस में रखे ताड़पत्रों वाली किताब पढूंगा कैसे ? क्यों कि मुझे तो संस्कृत नहीं आती।"

"डोंट वरी अंकल । मैं यहां बचपन में जिस स्कूल में पढ़ता था वहां एक बूढ़े शास्त्री जी थे संस्कृत के प्रकांड पंडित थे ।मैं पूछूंगा ।अगर वो जीवित होंगे तो उनको एक दिन घर पर ले आऊंगा।"


कहानी अभी जारी है……….

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2 Comments

Mohammed urooj khan

18-Oct-2023 10:56 AM

👌👌👌👌

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KALPANA SINHA

12-Aug-2023 07:16 AM

Nice part

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